
दिल्ली: आम आदमी की भगवंत मान सिंह सरकार इस समय किसान आंदोलन के चलते परेशान है। यही किसान आंदोलन जिसके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल पूरा संरक्षण दे रहे थे, पंजाब हरियाणा के कुछ जिले और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकट को आर्थिक रूप से पोषित करके इस आंदोलन को चलाने के लिए केजरीवाल ने काफी श्रम किया था। सड़क रोको, रेल रोको, आदि आंदोलन करके किस प्रकार भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर किया जाए और देश को अशांत किया जाए ताकि वह किसानों के ऊपर कड़ी कार्यवाही करें। लगभग 2 वर्षों से ज्यादा समय तक इस किसान आंदोलन ने आम लोगों को बहुत परेशान किया, कारण था किसानों के हित में लाया गया केंद्र सरकार का तीन कानून वापस लिया जाए क्योंकि यह कानून दलाल किसान जो किसानों के फसलों की या उनके उत्पादन की बिक्री आदि में दलाली करते थे, उनको इस कानून से अलग कर दिया था इसलिए वह सभी लोग केजरीवाल का साथ दे रहे थे। इस आंदोलन में जिन पार्टियों ने योगदान किया उसमें कांग्रेस, ममता बनर्जी की तृण मूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की सरकारे थी। किसी न किसी रूप में ये लोग इनको प्रोत्साहित कर रहे थे। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी तो आंदोलनकारियो के बीच में जाकर के भाषण भी देते थे। ये लोग उनकी आर्थिक मदद करके प्रोत्साहित भी करते थे। इसके साथ इस आंदोलन के कोढ़ में खाज की तरह राकेश टिकैत भी जुट गए थे। अपने लोगों को लेकर के वह एक-एक शगूफा पैदा कर रहे थे ताकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार परेशान होकर के शक्ति का सहारा ले और लाठी, – गोली चलवाए। इससे आंदोलनकारी लोगों के साथ हम लोग पूरे विश्व में यह प्रचार करेंगे कि भारत की अधिनायकवादी सरकार जनतांत्रिक आंदोलन को भी चलने नहीं दे रही है और किसानों पर लाठी और गोली चलवा रही है।
आज वही स्थिति पंजाब की आम आदमी की सरकार के मुख्यमंत्री भगवत सिंह मान के सामने है। अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार चली गई। अब उनको मुख्यमंत्री पद चाहिए वह भगवत सिंह मान के विरुद्ध इस आंदोलन को चलवा कर ऐसा प्रदर्शित करना चाहते हैं कि भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री लायक नहीं है। वह पंजाब के लोगों को परेशान कर रहा है। वह उन पर पुलिस बल का प्रयोग कर रहा है इसलिए उसे हटाना चाहिए। अरविंद केजरीवाल को इतिहास का ज्ञान नहीं है। जब से देश आजाद हुआ और जब से देश में लोकतांत्रिक ढांचे की सरकार ने काम करना शुरू किया अर्थात 1952 से, आज तक पंजाब ने किसी गैर सिख को अपना मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं किया। यदि जोड़-तोड़ करके अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री बन भी जाएं तो वहां की जनता गैर सिख को अपना मुख्यमंत्री कभी स्वीकार नहीं करेगी, यह निश्चित है।
अंततोगत्त्वा पंजाब में राष्ट्रपति शासन अवश्यंभावी दिख रहा है।