
श्याम नारायण पांडेय, जौनपुर
सरकार द्वारा आजादी के लिए सर उठाने वाले वीर नौजवानों को न केवल कुचला गया अपितु हजारों लोगों को अनायास ही फांसी पर लटका दिया गया। देश में जहां भी स्वतंत्र चेतना वाले नौजवानों का कोई कार्यक्रम होता उन्हें गोलियों से भून दिया जाता। ऐसे ही वक्त में मां भारती ने पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे वीर और विद्वान सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने लोक जागरण के लिए पत्रकारिता को अच्छा माध्यम बनाया।
इंडियन ओपिनियन –
पंडित मदन मोहन मालवीय ने सर्वप्रथम इंडियन ओपिनियन नमक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र प्रयाग से निकला आम प्रबुद्ध जनों वकीलों, शिक्षकों, नौजवानों, छात्र-छात्राओं और देश के प्रशासन से जुड़े लोगों का ध्यान पत्रकारिता की तरफ आकृष्ट किया। यह अखबार मालवीय जी ने 1885 में प्रकाशित किया और इसका संपादन और प्रकाशन उन्होंने स्वयं ही किया। यह पत्र अपने 1885 से 1987 तक प्रकाशित किया।
हिंदी दैनिक हिन्दोस्थान-
सन 1886 में कोलकाता कांग्रेस के अधिवेशन में मालवीय जी का अंग्रेजी भाषा में दिया गया ओजस्वी भाषण जिसका प्रभाव देशप्रेमी राजा काला काकर (प्रतापगढ़) पर बहुत पड़ा जिसमे मालवीय जी ने अपने भाषण में कहा कि अंग्रेजों ने भारत वासियों के साथ महान अनर्थ किया है । एक राष्ट्र की आत्मा का हनन और उसके जीवन को नष्ट करने से बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता। हमारा देश इसके लिए ब्रिटिश सरकार को कभी क्षमा नहीं कर सकेगा क्योंकि इन्होंने वीर देशवासियों को भेड़ बकरियों की तरह डरपोक बना दिया।
राजा रामपाल सिंह को अपने हिंदी दैनिक अखबार हिन्दोस्थान के लिए एक सुयोग्य संपादक की तलाश थी। आपने मालवीय जी से इसके लिए संपर्क किया तो मालवीय जी ने उनके सामने दो शर्तें । रखी प्रथम कि लेखनी पर कोई अंकुश नहीं रहेगा और दूसरी यह की राजा साहब नशे की हालत में न संपादकीय कार्यालय में आएंगे और न मालवीय जी को स्वयं अपने यहां बुलाएंगे।
मालवीय जी की शर्त को राजा रामपाल सिंह ने यथावत स्वीकार कर लिया और काला काकर जाकर एक अच्छे संपादक मंडल का गठन करके हिंदी के प्रथम अखबार हिन्दोस्थान का संपादन और प्रकाशन प्रधान संपादक के रूप में शुरू कर दिया। मालवीय जी की संपादकीय नीति का लक्ष्य दो ही था प्रथम देश की स्वतंत्रता प्राप्ति और दूसरा हिंदी भाषा की राष्ट्रभाषा के रुप में प्रतिष्ठा। आपने इस पत्र के द्वारा हिंदी देवनागरी का उत्थान तथा भारतीय संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों की सुरक्षा एक प्रहरी की तरह किया। थोड़े ही दिनों में
हिन्दोस्थान भारत का अग्रणी समाचार पत्र बन गया। लगभग 2 वर्ष बाद 1887 में तय की गई शर्तों के विपरीत नशे की हालत में राजा साहब ने मालवीय जी को बुला भेजा। एक वेदपाठी ब्राह्मण मालवीय जी यह कैसे बर्दाश्त कर सकते थे उन्होंने अखबार से अपना त्यागपत्र दिया और तुरंत काला काकर छोड़कर प्रयाग चले गए । यह पत्र अनेक संपादकों की देखरेख में काफी दिन तक चलता रहा।
अभ्युदय-
मालवीय जी ने 1907 में बसंत पंचमी के दिन साप्ताहिक अखबार अभ्युदय का श्री गणेश प्रयाग से ही किया । अखबार के पहले अंक में आपने लिखा कि हमारी अभिलाषा और उत्साह मंद नहीं है। पृथ्वी मंडल पर जितने पर्वत हैं उनमें सबसे ऊंचा नगाधिराज हिमालय है हमारी उत्कट अभिलाषा है कि हमारे भारत का अभ्युदय भी उतना ऊंचा हो। मालवी जी संपादकीय स्वतंत्रता के लिए हमेशा लड़ते रहे। 1908 में जब मालवीय जी विधान परिषद उत्तर प्रदेश के सदस्य हो गए तब अखबार का संपादन कार्य पुरुषोत्तम दास टंडन ने संभाला फिर वे हाईकोर्ट की वकालत में व्यस्त हो गए तब प्रसिद्ध पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी अखबार के संपादक बने गये। जब विद्यार्थी जी भी प्रताप के संपादन कार्य में कानपुर चले गए तब मालवीय जी के पुत्र कृष्णकांत मालवीय ने संपादन कार्य अपने हाथों में ले लिया 1921 में एक संपादकीय के कारण कृष्णकांत मालवीय एवं गोविंद मालवीय दोनों गिरफ्तार कर लिए गए तब अभ्युदय का प्रकाशन बंद हो गया।
लीडर –
24 अक्टूबर 1909 को विजयदशमी के दिन पंडित मदन मोहन मालवीय ने अंग्रेजी दैनिक लीडर और हिंदी दैनिक भारत का प्रकाशन आरंभ किया । यद्यपि सार्वजनिक विकास के कार्य में समय लागने से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कार्य में व्यवधान होता रहा लेकिन मालवीय जी ने इस समाचार पत्र के कार्य को भी उतना ही महत्व देकर प्रारंभ किया। मित्रों से आर्थिक मदद लेकर आपने यह पत्र चलाया कुछ दिन बाद इसकी प्रसार संख्या अच्छी हो गई अब सी. वाई चिंतामणि संपादक बनाए गए। बाद में लीडर प्रकाशित करने वाली संस्था न्यूजपेपर लिमिटेड के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू बनाये गए। फिर मालवीय जी इसके अध्यक्ष बने। अंत में हिंदुस्तान टाइम्स के संचालक घनश्याम दास बिड़ला ने लीडर खरीद लिया और फिर अखबार बंद हो गया।
मर्यादा-
महामना मदन मोहन मालवीय ने 1911 में मासिक पत्रिका “मर्यादा” का प्रकाशन प्रारंभ कराया। आपके इस पत्रिका का संपादक लक्ष्मीधर बाजपेई और सहायक संपादक कृष्ण कांत मालवीय बनाए गए। यह राजनीतिक प्रधान मासिक था इसके लेख और टिप्पणियां बहुत तीखी होती थी। पत्र का मंतव्य और उद्देश्य स्वाधीनता के पक्ष में ही था 1921 तक मर्यादा का प्रकाशन इलाहाबाद से हुआ जब मालवीय जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महत्वपूर्ण कार्य से अस्थाई रूप से काशी में ही बस गए तब मर्यादा वाराणसी के ज्ञान मंडल प्रेस से छपने लगी। इसके संपादक संपूर्णानंद जी बनाए गए। जब संपूर्ण आनंद जी अपने स्वाधीनता परक लेखों के चलते जेल चले गए तब संपादक मुंशी प्रेमचंद हो गए वर्ष 1930 में मर्यादा बंद हो गई।
सनातन धर्म –
मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए साप्ताहिक अखबार सनातन धर्म का प्रकाशन शुरू किया। विश्वविद्यालय के छात्रों को सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का ज्ञान कारने के साथ ही इस पत्र में साहित्य, विज्ञान, संस्कृति, कला, कौशल और भारतीय उन्नत परंपराओं की भी सामग्री दी जाती थी। मालवीय जी का मानना था कि धर्म ही सारे जगत का मूलाधार है किंतु उसमें रूढ़िवादिता और संकीर्णता नहीं होनी चाहिए। हिंदू धर्म में मालवीय जी की अटूट आस्था थी किन्तु अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु थे । इस पत्र का उद्देश्य था-
“जो हठि रखे धर्म को
तेहि राखे करतार ।।”
प्रारंभ में मालवीय जी ने मर्यादा का संपादक भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र को बनाया फिर इसके संपादक सीता राम चतुर्वेदी हो गए। मालवीय जी के जीवन पर्यंत यह पत्र प्रकाशित होता रहा फिर बंद हो गया।
हिंदुस्तान टाइम्स –
दिल्ली से प्रकाशित हिंदुस्तान टाइम्स अति विपन्न अवस्था में था। 1924 में मालवीय जी ने दानदाताओं का सहयोग और कुछ ऋण लेकर अखबार को खरीद लिया। पोथेन जोसेफ के संपादन में यह पत्र प्रकाशित होना शुरू हुआ। बाद में इसे घनश्याम दास बिड़ला ने खरीद लिया। यही पत्र आज हिंदुस्तान टाइम्स के नाम से अनेक शहरों से प्रकाशित हो रहा है। हिंदी दैनिक हिंदुस्तान इसी का हिंदी संस्करण है।
निष्कर्ष- मालवीय जी के बारे में सत्यदेव विद्यालंकार ने लिखा है कि महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता के आदि गुरु हैं । सर सी. वाई चिंतामणि ने कहा है कि – मालवीय जी का ही एकमात्र ऐसा व्यक्तित्व है जिन्हें साबरमती के संत के साथ खड़ा किया जा सकता है।
मालवीय जी हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। तत्कालीन पत्रकारिता पर आपने जो छाप छोड़ी वह अमित है आपने हिंदी अखबारों की श्रृंखला तो प्रकाशित ही की, अंग्रेजी अखबारों का भी संपादन और संचालन कर उन्हें समुन्नत किया।
अपने युग की तत्कालीन आवश्यकताओं को देखा, समझा और निर्भीकता पूर्वक अभिव्यक्त भी किया। पत्रकारिता का यही मूल उद्देश्य भी है।