
यह सत्य है कि कोई भी व्यक्ति बिना भोजन के जीवित नहीं रह सकता। ईमानदार आचरण के बगैर कोई भी समाज सड़ जाएगा। लेकिन आज समाज का यही दो वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित है। हरित क्रांति से पहले कर्ज से दबे किसानों की आत्महत्या का कोई उदाहरण नहीं मिलता।
बताया गया है कि उस समय कृषि उत्पादन का क्रय मूल्य काफी अच्छा था। दस मान अर्थात चार कुंटल अनाज से दस ग्राम का स्वर्ण आभूषण खरीदा जा सकता था। वर्ष 1960 के दशक तक कृषक वर्ग अपने कृषि उत्पादन से ही परिवार की सारी आवश्यकताएं पूरी कर लेता था। उसमें आवश्यक कार्य के साथ शादी विवाह का कार्य भी निपटा लेता था। वह उस समय खुश था इसके बाद के दशकों में कृषि उत्पादन के अलावा अन्य वस्तुएं जिन्हें किसान बाजार से खरीदता था उसकी महंगाई बेतहासा बढ़ी । कृषक वर्ग काफी परेशान ही नहीं हुआ बल्कि देश में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं काफी बढ़ गई।
अब सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारी और अधिकारियों के वेतन की स्थिति देखें तो उसमें 300 गुना बढ़ोतरी हुई है और कृषि उत्पादन मूल्य में पूरी तौर पर स्थिरता बनी हुई है। अधिकतम अनाज की मूल्यवृद्धि 60 गुना है। इस व्यवस्था से किसानों की दुर्दशा बढ़ी है जिससे एक पान की दुकान करके आदमी 10 लोगों के परिवार का भरण पोषण कर लेता है जबकि 10 एकड़ कृषि क्षेत्र का स्वामी किसान ऐसा नहीं कर सकता।
अब सरकारी सेवाओं की बात करें तो पुलिस स्टेशनों, तहसीलों, विकास कार्यालयों व अस्पतालों आदि स्थानों पर सबसे ज्यादा शोषण किसानों और ईमानदार नागरिकों का ही होता है।
देश में समाजवाद के नाम पर जितने भी प्रयोग हुए हैं सभी किसानों पर ही किए गए। सिक्मी कानून के तहत ज्यादातर बड़े और मझोले किसानों की जोत निकल गई वह प्रकारांतर से आज कृषक मजदूर हो गया और उसी किसान के यहां काम करने वाले उस जमीन के स्वामी हो गए किंतु नगरीय क्षेत्र में ऐसा कानून लागू नहीं हुआ। बड़े किसान मात्र 12.5 एकड़ जमीन रख सकते थे। व्यावसाइयो के लिए ऋण हेतु कानून आसान है किंतु केसीसी पर यदि किसान एक लाख ऋण लेता है और विपरीत मौसम की समस्या और जानवरों द्वारा खेती के नुकसान के चलते वह पैसा जमा नहीं करता तो उसे परेशान कर दिया जाता है जेल जाने की स्थिति भी आ जाती है।
आचरण में ईमानदारी को ऐसे समझा जा सकता है। जब अपनी सेवा ईमानदारी से पूरी तरह देकर दरोगा अवकाश प्राप्त करता है तो 10 करोड़ का स्वामी होता है। यदि एक आईएएस या आईपीएस रिटायर होता है तो 100 करोड़ का स्वामी होता है। इंजीनियर एवं अन्य सेवाओं के उच्च अधिकारी कितना कमा लेते हैं इसका अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता।
इस देश के सेवकों – एमएलए, एमएलसी, एमपी, मंत्री कितना कमा लेते हैं इसका अनुमान लगाना कठिन है। यह पागल जनता जब इन देश सेवकों को देखती है जिन्हें वह देश चलाने के लिए वे वोट देती है तो देश में आग लगाने की इच्छा होती है। आम नागरिक इस आशा में जी रहा है कि हो सकता है हमारी अगली पीढ़ी को देशभक्त और ईमानदार प्रशासन देखने को मिले।