जे.पी. कन्वेंशन सेंटर का मामला गर्माया

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लखनऊ: लखनऊ प्रख्यात स्वाधीनता संग्राम सेनानी और इमरजेंसी का राष्ट्रीय स्तर पर घोर विरोध करने वाले जय प्रकाश नारायण के नाम पर 2003 में तत्कालीन प्रदेश सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा एक कन्वेंशन सेंटर बनना प्रारंभ किया गया लेकिन कुछ दिन बाद उसमें शिथिलता आ गई और वह रुक गया। बाद में अन्य सरकारें आयी किंतु मामला रुका पड़ा ही रहा। जब 2012 में फिर समाजवादी पार्टी की सरकार आई और मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब भी जे.पी. कन्वेंशन सेंटर का निर्माण कार्य रुका ही रहा। फिर 2017 से 22 तक भाजपा सरकार के कार्यकाल में भी निर्माण कार्य की प्रगति नहीं हुई लेकिन 2022 में जब कन्वेंशन सेंटर की तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान गया तो उन्होंने इसका निर्माण कार्य पूरा कराया। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उसके उद्घाटन तथा जे पी की मूर्ति पर माल्यार्पण आदि का प्रश्न आया तो माल्यार्पण करने के लिए अखिलेश यादव भी तैयार थे लेकिन शासन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि जब इमरजेंसी के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाया, उस समय चंद्रशेखर आदि तमाम स्वाभिमानी नेताओं के साथ सारा विपक्ष सड़क पर गया और लाखों लोग इमरजेंसी के दौरान जेल में डाल दिए गए थे। उसमें मुलायम सिंह भी विरोधियों के साथ बढ़ – चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। कांग्रेस के भी चंद्रशेखर आदि जैसे कम से कम पचासों हजार लोग जेल में डाल दिए गए थे। इमरजेंसी को भोगने वाले लोगों में कांग्रेस के अलावा सारे दल के लोग थे। जेपी तो इमरजेंसी आंदोलन के नायक थे, – जब उनका भाषण होता था तो पहले एक गीत गाया जाता था –

जय प्रकाश का बिगुल बजा तो

जाग उठी तरुणाई है।

तिलक लगाने तुम्हे जवानों!

क्रांति द्वार पर आयी है

धीरे-धीरे यह अध्याय पूरा हुआ और जय प्रकाश नारायण के प्रयास से लोक सभा चुनाव में इंदिरा गांधी बुरी तरह पराजित हुई, और जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वह बहुत दिन तक नहीं चल सकी और फिर सब दल अलग-अलग हो गए, और फिर इंदिरा गांधी की सरकार आयी। इसके कुछ दिन बाद जयप्रकाश नारायण का देहावसान हो गया।

उनके देहांत होने के बाद जब सदन में अन्य दलों की तरफ से उनको श्रद्धांजलि देने का प्रस्ताव आया तो इंदिरा गांधी ने इसे तत्काल ना मंजूर करवा दिया उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण किसी भी सदन के सदस्य नही थे। इसलिए सदन द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दिया जाना उचित नहीं है तब अन्य दलों के बड़े नेताओं ने इंदिरा गांधी के सम्मुख यह विचार व्यक्त किया कि लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी ऐडबिना माउंटबेटन जब इंग्लैंड में मरी तब वह भी किसी सदन की सदस्या नहीं थी लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रस्ताव पर उन्हें इसी सदन में श्रद्धांजलि अर्पित की गई, तो इन्हें क्यों नहीं श्रद्धांजलि अर्पित की जा सकती? यह तो देश के बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था फिर भी इंदिरा गांधी ने ऐसा नहीं होने दिया। कांग्रेस ने जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न भी नहीं देने दिया। जब अटल बिहारी के प्रधानमंत्रित्व में जब कई दलों की मिली जुली सरकार बनी तो उस समय जयप्रकाश नारायण को लोकनायक के रूप में याद किया गया और उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया गया। ऐसी स्थिति में जब आज समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों का चोली दमन का साथ है और कांग्रेस की रीति नीति के अनुसार समाजवादी पार्टी चल रही है तो सिद्धांत रूप में अखिलेश यादव को जयप्रकाश नारायण के सम्मान में माल्यार्पण करने का विचार करना उचित नहीं प्रतीत होता। संभवत इसीलिए शासन द्वारा उन्हें माल्यार्पण करने से रोक दिया होगा।

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