प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम 1867, मुद्रण एवं प्रकाशन संबंधी कानून में सबसे पुराना कानून है। यह कानून आज भी कुछ संशोधनों के साथ यथावत लागू है। यह अधिनियम 6 भागों में विभाजित है –
भाग – 1 इसमें विभिन्न नामों की परिभाषाएं दी गई हैं। इस परिचयात्मक भाग भी कहा जाता है।
भाग – 2 इसमें मुद्रायलय एवं समाचार पत्रों के बारे में उपबंध है।
भाग – 3 इसमें पुस्तकों के लेखन, प्रकाशन और वितरण का विवरण है।
भाग – 4 इस भाग में अधिनियमों के उल्लंघन पर दंड-व्यवस्था का विवरण है।
भाग – 5 इस भाग में समाचार पत्रों के पंजीयन संबंधी अधिनियमों एवं प्रक्रिया का विवरण है।
भाग – 6 यह भाग विविध कानूनों से संबंधित है जिसमें नियम बनाने की शक्तियों का उल्लेख है।
प्रथम भाग-
समाचार पत्र :- कोई भी नियतकालिक कृति जिसमें सार्वजनिक एवं जनहित से संबंधित खबरें और इन पर टिप्पणियों को लिखा गया हो समाचार पत्र की श्रेणी में आता है। इसे निम्नांकित तत्वों का होना आवश्यक है।
1. समाचार पत्र मुद्रित हो।
2. समाचारपत्र नियतकालिक हो जैसे – दैनिक, अर्द्धसाप्ताहिक, पाक्षिक आदि।
3. समाचार एवं देश कल एवं परिस्थितियों से संबंधित टिप्पणियां भी हो।
4. सभी समीक्षाएं सार्वजनिक और जनहित में हो।
संपादक:- संपादक वह व्यक्ति होता है जो पत्र में प्रकाशित सारी सामग्री के चयन को नियंत्रित करता है।
इस अधिनियम की धारा – 5 (1) के अधीन यह आवश्यक है कि पत्र पर संपादक का नाम का उल्लेख हो। जिस व्यक्ति का नाम पत्र में संपादक के रूप में प्रकाशित होता है वही व्यक्ति अखबार में छपी सारी सामग्री के लिए संवैधानिक रूप से उत्तरदायी होता है।
मुद्रक:- मुद्रक वह व्यक्ति होता है जो समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाली सामग्री का मुद्रण अथवा साइक्लोस्टाइल आदि करवाता है।
प्रकाशक:- प्रकाशक वह व्यक्ति होता है जो समाचार- पत्र को छपवाता है और बिक्री के लिए प्रस्तुत करता है।
मजिस्ट्रेट :- इसका आशय मजिस्ट्रेट की शक्ति का प्रयोग करने वाले व्यक्ति से है जिसमें पुलिस की भी शक्ति निहित होती है।
द्वितीय भाग
यह भाग समाचार पत्रों के प्रकाशन के बारे में विशेष महत्व का है। इस भाग में प्रस्तावित अधिनियम की धारा 5 में उल्लेखित नियमों का पालन किए बिना किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका आदि का प्रकाशन नहीं किया जा सकता।
इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है
1. समाचार पत्र की हर प्रति पर संपादक का नाम अवश्य लिखा जाए।
2. संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पत्र के घोषणा- पत्र के साथ मुद्रक और प्रकाशक स्वयं उपस्थित हो।
स्वामी भी घोषणा -पत्र के मजिस्ट्रेट के सम्मुख उपस्थित हो।
3. मजिस्ट्रेट द्वारा घोषणा- पत्र प्रामाणित किया जाना आवश्यक है अन्यथा आर०एन०आई० बगैर प्रमाणित घोषणा – पत्र पर विचार ही नहीं करता।
4. यदि शीर्षक की स्वीकृति मिल गई है तो अखबार नियत अवधि में अवश्य प्रकाशित किया जाए।
दैनिक व साप्ताहिक, का स्वीकृति के पश्चात छह: सप्ताह के अंदर प्रकाशन शुरू हो जाना चाहिए। साप्ताहिक से अधिक अवधि वाली पत्र – पत्रिकाएं तीन माह की अवधि के अंदर समाचार पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित होनी चाहिए।
5. समाचार पत्र के स्वामित्व, स्थान, भाषा, नियतकालिकता संपादक आदि के परिवर्तन होने पर नवीन घोषणा पत्र दाखिल कर पुनः मजिस्ट्रेट से सत्यापित किया जाना अनिवार्य होता है।
6. यदि मुद्रक या प्रकाशक 90 दिन से अधिक समय के लिए विदेश चला जाता है या अपना दायित्व संभालने में असमर्थ होता है तब भी नया घोषणा- पत्र दाखिल किया जाना आवश्यक हो जाता है।
7. एक ही शीर्षक से उसी भाषा में उसी राज्य से कोई अन्य पत्र प्रकाशित नहीं हो सकता। इसे रोकने के लिए मजिस्ट्रेट और रजिस्टर के यहां आवेदन किया जाता है।
8. समाचार- पत्र, पंजीयक देश के विभिन्न भाषा कालिकता तथा अनेक प्रकार के पत्रों के बारे में पंजी० रखता है जिसमें समाचार पत्र की सारी सूचनाएं संकलित होती हैं।
9. घोषणा- पत्र की एक प्रति जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में, एक प्रति दीवानी न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एवमं एक प्रति राज्य सूचना निदेशालय में सुरक्षित रहती है।
10. भारतीय प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम का उल्लंघन करने पर घोषणा पत्र रद्द कर दिया जाता है।
तृतीय भाग
इसमें पुस्तकों से पंजीयन, प्रकाशन, मुद्रण स्वामित्व लेखन के बारे में सारी सूचनाओं पंजीयन के कार्यालय में नियमानुसार सूचना देनी होती है।
चतुर्थ भाग, पंचम एवं षष्ठम भाग
यह भाग संबंधित नियमों का उल्लंघन करने पर दंड देने से संबंधित है।
यदि समाचार पत्र स्वामी, संपादक, मुद्रक और प्रकाशक नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है और वह पत्र का प्रकाशन भी करता है तो अपराध सिद्ध होने पर उत्तरदायी लोगों को दो हजार रुपए जुर्माना या छ: माह का कारावास या दोनों की सजा हो सकती है।
यदि धारा 11 के तहत मुद्रक व प्रकाशक नियमों का पालन नहीं करते है तो दो दंड दिए जाने का प्रावधान है।
1. घोषणा पत्र रद्द कर दिया जाता है।
2. नियमानुसार दंड भी दिया जाता है जिसमें अर्थ दंड और कारावास दोनों की व्यवस्था है।