
श्याम नारायण पाण्डेय, जौनपुर
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर की परीक्षाएं पिछले डेढ़ माह से चल रही हैं। छात्र-छात्राएं अपनी अपनी व्यथा – कथा कह रहे हैं पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पा रहा है परीक्षाएं चालू हो जा रही हैं। जो परीक्षाएं वर्ष में एक बार होती रही अब दो-दो बार सेमेस्टर के रूप में हो रही हैं हर कॉलेज अब प्रवेश परीक्षा भी देने लगा है।
इस प्रकार बच्चों को तीन बार शुल्क देना पड़ रहा है प्रवेश शुल्क लिया जाता है और दो-दो बार परीक्षा शुल्क भी लिया जा रहा है। कहने के लिए नई शिक्षा नीति लागू है लेकिन कुछ भी नयापन नहीं दिखाई दे रहा है ना तो पाठ्यक्रम में ना तो परीक्षा व्यवस्था में, शिवाय इसके कि पूरे दिन साल भर 12 महीने परीक्षाएं ही चल रही हैं। एक दो विषय बढ़ जरूर गए हैं चाहे वह कला का विषय हो, मानविकी का विषय हो, विज्ञान का हो, वाणिज्य का हो अथवा कृषि विज्ञान हो अतिरिक्त विषय पढ़ना ही है। इस विषय की परीक्षा भी देनी ही है इसके बाद नीति का प्रश्न आता है। इसका शाब्दिक अर्थ नैतिकता से है यह शिक्षा व्यवस्था छात्रों को कितना नैतिक बना रही है यह शिक्षा व्यवस्था वर्तमान पीढ़ी को कितना चरित्रवान बन रही है अभिभावक भी महसूस कर रहे हैं और समाज की इसके पहले की शिक्षा व्यवस्था में स्नातक स्तर पर 2 वर्षीय परीक्षा होती रही प्रत्येक वर्ष एक बार प्रवेश में और एक बार परीक्षा शुरू किया जाता रहा। उस समय प्रत्येक विषय का पाठ्यक्रम पूरा तो होता ही रहा दोहराया भी जाता था एक भी अध्याय ऐसा नहीं होता था जिसे दोहराया ना गया हो, अब स्नातक स्तरीय उपाधियां 3 वर्षीय हो गई हैं सेमेस्टर के रूप में इसमें छह बार प्रवेश लिया जाता है और छह बार परीक्षा भी ली जाती है। ऐसा होने पर इस प्रकार से परीक्षा शुल्क भी बढ़ा दिया गया है बौद्धिक क्षमता भले ही ना बढ़ी हो लेकिन इस परीक्षा व्यवस्था से अभिभावक तो कंगाल ही हो रहे हैं नई शिक्षा नीति में तीन गुना शुल्क बढ़ गया है।