
बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह ने महात्मा गान्धी के आह्वान पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुलाई 1920 मे अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। वे 1920 से 1947 तक पूरे देश में चल रहे कांग्रेस के अधिवेशन मे जौनपुर का प्रतिनिधित्व किए। आप ने अपनी वाणी को व्यापाक रूप देने के लिए 20 फरवरी 1914 को अंग्रेजी सप्ताहिक द अवेकर और हिन्दी सप्ताहिक सत्याग्रही का प्रकाशन किया। ये दोनो अखबार बाबू रामेश्वर प्रसाद के प्रयास से साइक्लोस्टाइल के द्वारा निकालते और लोगों में स्वयं ही वितरित करते रहे, क्योंकि कांग्रेस के राजनैतिक काय्रक्रमों को आम जनता तक पहुॅचाने के लिए एक मात्र यही माध्यम था। ये दोनो अखबार ज्यादा समय तक नहीं चल सके, क्योंकि सरकार के विरोध में खबरे छापना और खबरों को प्रचार-प्रसार करना उन दिनों बड़ा मुश्किल था।
जौनपुर से ही बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह के सम्पादकत्व में 27 अक्टूबर 1927 को हिन्दी सप्ताहिक समय का प्रकाशन रासमण्डल में स्थित सेवा प्रेस से शुरू हुआ। 8 मई 1927 को ही समय अख़बार पर प्रशासन का पहला डंडा पड़ा। जब सम्पादक को चेतावनी दी गयी कि सम्पादक शासन के विरूद्ध उग्र लेखन तुरन्त छोड़े अन्यथा कड़ी कारवाई की जा सकती है। 19 नवम्बर 1940 को समय ने प्रेस के लिए काले कानून का विरोध करते हुए एक सम्पादकीय लिखा, किंतु यह ब्रिटिश हुकुमत के दबाव में छप नहीं पाया। 5 अगस्त 1942 को कांग्रेस पार्टी की खबरे छापने के लिए अखबार को फिर चेतावनी दी गयी। गांधी जी के साथ पं0 जवाहर लाल नेहरू और रघुपति सहाय फिराक 19 नवम्बर 1940 को सेवा प्रेस आये और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से वार्ता करने के बाद यहां से गोरखपुर गये। बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह के अखबार समय के कार्यालय में कांग्रेस के बड़े नेताओ-जहीर हुसैन, सम्पूर्णानन्द, रफी अहमद किदवई आदि का आगमन निरंतर होता रहा। कांग्रेस के कार्यक्रमों और प्रचार-प्रसार के लिए समय अखबार का कार्यालय में प्रकारान्तर से राजनीति गतिविधियों का केन्द्र बन गया था। कोई भी ऐसी खबर नहीं होती थी जो कांग्रेस के कार्यक्रम से सम्बन्धित हो अथवा प्रशासन का दमन चक्र हो समय से छूटती नहीं थी।
समय का ध्येय वाक्य था-
भारत नीति गगन में निसदिन जीवन ज्योति जगायेगा
समय-समय की बात समय पर समय आप बतालायेगा।
अर्थात आम आदमी की जिन्दगी से सम्बन्धित ऐसी कोई खबर या सूचना जो समय में सभी छपेगी। इस प्रकार छोटी-बड़ी सभी घटनाये समय में छपती थी और लोगों तक पहुॅचती थी। आजादी के आन्दोलन में जनपद से लगभग 1000 से ज्यादा लोगों को जेल भेजा गया था सैकड़ों देशभक्तों को मौत के घाट उतारा गया था। उस समय की घटनाओं की खबरे समय में छपती रहती थी।
आजादी मिलने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि समय एक उच्चस्तरीय अखबार बनेगा, लेकिन बाबू साहब की वृद्धावस्था और प्रेस सामग्री की महंगाई के कारण ऐसा हो नहीं सका, लेकिन समय ने अपने सप्ताहिक रूप में जनता की सेवा का व्रत जारी रखा। अब इसे बाबू रामेश्वर प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र दिनेश कुमार सिंह उर्फ दम्मू जी देख रहे थे। उनके अन्य लड़के प्रसाशन की नौकरी में थे इसलिए दम्मू जी की मृत्यु के बाद समय का प्रकाशन बन्द हो गया। बाबू जी द्वारा स्थापित हिन्दी-भवन पुस्तकालय में समय की प्रतियों की सुव्यस्था की गयी थी,किन्तू देख-रेख के अभाव में पूरी समय की फाईल ही गायब हो गयी है। आजादी की लड़ाई में समय का योगदान अविस्मरणीय है और स्वतंत्रता के इतिहास में प्रेस की भूमिका के उदाहरण के रूप में समय का नाम स्वराणछरों में अंकित है।