
-आलोक त्रिपाठी लकी
बजट में आज जो कुछ देखने को मिला विल्कुल ही दवाव में बना बजट लगा। इस बजट की खामियों को इस प्रकार से स्पष्ट करने का प्रयास किया हैबिहार- हम बिहार से बात करते है वर्ष 2015 में माननीय प्रधानमंत्री जी ने विहार से कहा था कि 50 हजार करोड़ दे कि 60 हजार करोड़, 60 हज़ार करोड़ दे कि 70 हज़ार , 70 हज़ार करोड़ दे कि 80 हजार करोड़ और अंत मे 125 सौ करोड़ का वादा किया जो अब लगभग 57हजार करोड़ 10 साल बाद jdu गठबंधन के बाद सम्भव हो पाया। अब यही हाल आंध्र का है वर्ष 2018 में चंद्र बाबू नायडू ने NDA का साथ छोड़ अपनी मांग पूरी न होने पर कहि इस बार न छोड़ दें इसलिये राजधानी के निर्माण के लिए 15 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा हुई। बाकी सारे राज्य ताकते नजर आए।संघीय बजट 2024 के अनुसार हर वर्ष देश की टॉप की 500 कंपनी में 2000000 युवाओं को अप्रेंटिस कराकर स्किल डेवलोपमेन्ट की बात कर इंडिया गठबंधन की स्कीम को आगे बढ़ती दिखी, पर यहाँ युवाओं को धन डिरेक्टली न देते हुए कंपनियों को सब्सिडी देने की बात हुई, तो क्या सरकार अपने मित्रों ( मित्रो की कंपनियों) को लाभान्वित करना चाहती है। आकड़े बताते है कि पिछले स्टार्टअप जो चालू हुए थे उनमें 90% फेल हो गए अब पुनः उन्ही को 10 लाख से बढ़कर 20 लाख लोन देने की तैयारी की है सरकार ने, जबकि नौकरियों के लिए निवेश की बहुत जरूरत है। किसानों को तो शायद हो कुछ मिला इस बजट से जो मिला तो है कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग का जुमला, आप किसानों की मदद करना चाह रहे है तो आप किसान की डायरेक्ट मदद करें यथा आप खाद बीज सस्ती कर दें , कृषि के ट्रैक्टर या अन्य उपकार आदि में सब्सिडी देकर या टैक्स की कमी या टैक्स फ्री आदि।माध्यम वर्ग को क्या मिला-माध्यम वर्ग जो देश की प्रगति की रीढ़ माना जाता है और अपनी कमाई कोबचा कर देश की तरक्की में हाथ बटाता है लांग टर्म कैपिटल गेन में टैक्स 15% से बढ़कर 20% कर दिया गया जो ठीक नही है या यूं कहें कि अब बचत को सरकार प्रोत्साहित ही नही करना चाहती।