देश पर मर मिटने वाले शहीदों की शान में एक शायर ने ठीक ही लिखा है
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा“
जौनपुर: भारत जब दासता की बेड़ियों में आबद्ध होकर त्राहिमाम का रहा था, उन्हीं दिनों गुलामी की बेड़ियों को काट कर देश को आजाद कराने का संकल्प लेने वाले लाखों नौजवान अपना सर्वस्व होम करके आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, इन्हीं वीर सपूत में एक थे- जमींदार सिंह
धनियामऊ काण्ड का संक्षिप्त वृत्तांन्त
देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। माँ भारती अपनी स्वतन्त्रता की पुकार तेज करती जा रही थी। उनके बेडियों को काट-फेकने के लिए जी-जान से लगे संघर्षरत थे। न जाने कितने शहीद हो चुके थे। कितने शहीद होने की राह पर अग्रसर थे। माँ भारती के पुत्रों को देश की आजादी के सिवा कुछ भी न याद था, न भूख न प्यास न घर न वीवी न बच्चे न माँ-बाप। याद या तो सिर्फ एक ही काम-भारत की आजादी।
संघर्ष की ज्वाला समूचे देश में गाँधी जी के विचारों तले घधक रही थी। उसी समय उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर याना बक्शा ग्राम हैदरपुर में पिता सुखदेव सिंह की दो सन्तानों में देश की आजादी के सपने हिलोरे ले रही थी।
बही सन्तान जिन्हें दुनियाँ आज शहीद जमीदार सिंह के नाम से जानती है, वो बचपन से ही पढ़ाई में कुशग्र बुद्धि एवं खेल-कूद में भी काफी रूचि रखते थे। उनकी शिक्षा दीक्षा राजा हरपाल सिंह महाविद्यालय सिंगरामँऊ में अपने छोटे भाई अमलदार सिंह के साथ चल रही था। राजा- साहब का भी आप पर विशेष स्नेह रहता था।
पढ़ाई के साथ-साथ हिन्दुस्तान की आजादी के सपने आप पर हावी होते जा रहे थे। अपने दोस्तों के साथ अक्सर देश की आज़ादी के चर्चे किया करते थे। इसी कड़ी में जमीदार सिंह, पं० रामनरेश शर्मा जी एवं कई अन्य लोगों ने मिलकर बदलापुर के थाने को लूटने का फैसला किया। तारीख तय की गई 16 अगस्त 1942 आसमान से मुसलाधार बारिश हो रही थी। क्रान्तिकारियों की एक टुकड़ी पं० रामनरेश शर्मा जी के नेतृत्व में बदलापुर थाने की तरफ रवाना हो गई और एक टुकड़ी। शहीद जमींदार सिंह के नेतृत्व में धनियामऊँ पुल को तोड़ने के लिए निकल पड़ी जिससे बक्शा याने की पुलिस टीम बदलापुर याने की सहायता करने के लिए वक्त पर न पहुँच सके।
पर ईश्वर को शायद कुछ और ही मन्जूर था। दोपहर के 2-4 बजे के बीच जब क्रान्तिकारियों की लगभग 150 की संख्या में टुकड़ी पुल को तोड़नें में लगी थी, उसी समय याना बक्शा इन्स्पेक्टर अपनी टीम सहित मौके पर पहुँच गयी और लोगों को पुल न तोड़ने एवं सभी को अपने-अपने घर जाने की चेतावनी देने लगी। इतना सुनते ही लोग क्रोधित होकर पुलिस वालों पर ईट पत्थर चलाने लगे। जबाब में इन्स्पेक्टर ने हवाई फायरिंग की। गोलियों की आवाज सुनकर कुछ लोग अपने को सुरक्षित स्थान पर ले गए।
गठीला बदन लिए जमींदार सिंह अपने तमाम साथियों के साथ पुलिस वालो पर टूट पड़े और हाथों और मुक्कों से मारने लगे। जमीदार सिंह ने इन्स्पेक्टर को जमीन पर उठाकर पटक दिया।इन्स्पेक्टर ने अपनी बंदूक तानकर जमींदार सिंह की दाढी में गोली चला दी। माँ-भारती का यह सपूत मौके पर ही हिन्दुस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए सदा-सदा के लिए अमर हो गए।
उनके तमाम साथियों को अगरौरा में बबूल के पेड़-पर बांधकर गोली मार दी गयी। और उनकी लाशें कई दिनों तक पेड़ पर लटकी रहीं। अन्य शहीदों में रामानन्द, रघुराई, रामआधार, रामपदारथ चौहान और रामनिहोर कहार प्रमुख थे।16 अगस्त 1942 को शहीद जमींदार सिंह 10 वीं कक्षा पास करके ग्यारहवीं में पहुँचे थे। उस समय उनकी उम्र महज 16-17 वर्ष थी।जल्द ही उनका विवाह श्रीमती प्रभू देवी जी के साथ हुआ या जिनके गर्भ में महज 3 माह का उनका वंश पल रहा था। जन्म के पश्चात उनके बच्चे का नाम क्रान्ति प्रताप सिंह रखा गया।
अंग्रेजो की दमनकारी नीति के चलते शहीद जमीदार सिंह के अनुज अमलदार सिंह को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर मुम्बई जाना पड़ा बड़ी कुर्बानियों के बाद देश आजाद हुआ।
आजादी के पश्चात अमलदार सिंह जी अपने कर्तव्यनिष्ठा के कारण आगे चलकर भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं भारतीय रेलवे मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए।क्रान्ति प्रताप सिंह जी जयहिन्द इण्टर कालेज तेजीबाजार से प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्व हुए एवं समाजसेवा करते हुए 69 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हो गए। क्रान्ति प्रताप सिंह के पुत्र संजय कुमार सिंह घर से ही खेती-किसानी का कार्य करते है।
क्रान्ति प्रताप सिंह के चचेरे भतीजे श्री जयसिंह जी वर्तमान में रेलवे विभाग में मुम्बई में कार्यरत है एवं पूरी तन्मयता के साथ सामाज सेवा में लगे हुए है।शहीद जमींदार सिंह के प्रपौत्र डा० प्रभात विक्रम सिंह अपनी क्लीनिक के माध्यम से समाजसेवा में लगे है। साथ ही साथ राजनीति में भी सक्रिय है।
जमींदार सिंह का वंश वृक्ष
सुखदेव सिंह के सुपुत्र – शहीद जमींदार सिंह एवम् द्वितीय पुत्र अमलदार सिंह
शहीद जमींदार सिंह के सुपुत्र क्रांति प्रताप सिंह के – सुपुत्र संजय कुमार सिंह के सुपुत्र डॉ० प्रभात विक्रम सिंह

प्रपौत्र- शहीद जमींदार सिंह


