जौनपुर: जनपद के वरिष्ठ समाजसेवी और राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह ने सरकार की वर्तमान दुर्व्यवस्था को देखते हुए यह कहा है कि इससे तो बहुत अच्छा होता कि कोई सरकार ही न होती ?
आपने कहा है कि किसी भी सरकारी मोहकमे के दफ्तर में चले जाइए आपको अनुभव हो जाएगा कि कार्यपालिका क्या कर रही है। सरकार भले ही कोई व्यवस्था दे दे। जब तक कार्यपालिका उसका क्रियान्वयन नहीं करती तब तक वह सारी व्यवस्थाएं बेमानी है।

बेरोजगार व व्यवसायों से बहस करते बैंक अधिकारी
बैंक को ही ले लीजिए, कोई भी पढ़ा लिखा नौजवान अपना शैक्षिक अथवा व्यवसायिक प्रमाण पत्र लेकर किसी भी बैंक में बगैर गारंटी के 10 लख रुपए का अधिकार रखता है। यह केंद्र और प्रदेश दोनों सरकारे कहती हैं। उनका सर्टिफिकेट ही उनकी गारंटी होता है। इस नियम को तार पर रखते हुए बैंक वाले ऐसे बेरोजगारों को धकिया कर बाहर कर देते हैं। वह कुछ भी दुहाई दे, लेकिन बगैर कुछ उनको दिए कोई काम नहीं होना है।
यही नहीं एक बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है छोटे बड़े सभी किसानों के लिए बहुत पहले से केसीसी द्वारा मदद किए जाने की व्यवस्था की गई है। केसीसी का अर्थ है – किसान क्रेडिट कार्ड। होना या चाहिए कि कार्ड लेकर कृषक बैंक में जाए, उसका कृषि क्षेत्र देखकर के बैंक तदनुसार इसकी आवश्यकता को देखते हुए उसकी मदद उसके खाते के जरिए कर देता है। यही किया जाना भी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं, बैंक मैनेजर पहले तो इंतखाब और उसके खेत का खसरा मंगवाता है। इन दोनों के लिए वह बैंक के वकील के यहां जाकर के उनसे प्रेम से शीघ्र ही उसकी फाइल भेजने की सिफारिश करता है। इसके बाद भी बैंक वाले इतना दौड़ा देते हैं कि किसान वापस घर चला जाता है और यह कहता है कि इससे तो अच्छा था की साहूकार से पैसा लेकर के हम अपना काम कर लेते थे और फसल होने पर उनको कुछ ज्यादा दे देते थे। सरकार कुछ कहती है और कार्यपालिका कुछ करती है सरकार होने का क्या मतलब है?
