भारतीय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष द्वारा संविधान की चर्चा पर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है और यह चर्चा 13-14 दिसंबर को होगी। इसे अध्यक्ष लोकसभा द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का कहना है कि यह सरकार संवैधानिक परंपराओं और गतिविधियों का दुरुपयोग करके मनमानी ढंग से फैसले कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आचरण अधिनायकवादी जैसा लगता है लेकिन प्रधानमंत्री के आचरण पर राहुल गांधी यह आरोप लगा रहे हैं किंतु इतिहास की संभावित जानकारी नहीं है की कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने कब- कब, कहां-कहां कितनी- कितनी बार मनमानी ढंग से संविधान को तोड़ा और मरोड़ है। सर्वप्रथम हम आज देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संबंध में ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे जब उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में आब्जर्वर नामक एक साप्ताहिक अंग्रेजी पत्र में छपे लेख पर बहुत ज्यादा नाराज हुए थे और उन्होंने ऐसे लेखों पर पाबंदी लगाने का कानून बनवा दिया। यह भारत में अभिव्यक्त की स्वतंत्रता पर पहला आघात था। कानून के साथ छेड़छाड़ का यह पहला मामला भी था।
इसके बाद लेडी माउंट बैटन की मौत पर सदन में शोक प्रस्ताव लाने के लिए जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं प्रस्ताव रखा तो कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति थी आपत्ति का कारण यह था की लेडी माउंटबेटन प्रधानमंत्री की मित्र भले ही रही हों लेकिन वह सदन के किसी भी हाउस की सदस्य नहीं थी और किसी गैर सदस्य को यह सम्मान नहीं दिए जाने की परंपरा रही है फिर भी पंडित जवाहरलाल नेहरू की जिद के आगे पूरे सदन को झुकना पड़ा और लेडी माउंटबेटन को सदन के द्वारा श्रद्धांजलि दी गई।
कांग्रेस की दूसरी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी बनी तो यह स्थिति उनके कार्यकाल में कई बार आयी। इसी के कारण 1969 में संविधान में मनमानी संशोधन के फलस्वरूप कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्यों ने विरोध किया और पार्टी दो फाड़ में बट गई। एक कांग्रेस (इन्द्रगांधी) और दूसरी कांग्रेस (अर्श)।
इसके बाद 1971 में जब निर्वाचन में श्रीमती इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीती तो उनके विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके निकटतम प्रतिद्वंदी राजनारायण द्वारा एक याचिका दायर की गई जिसमें आरोप लगाया गया की श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा अनुचित साधनों का उपयोग कर निर्वाचन की सुचिता को समाप्त कर दिया गया है और चुनाव जीता गया है अन्यथा वे हार चुकी थी। इसकी जांच करवाई गई और जांच में पाया गया कि वस्तुत: श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा निर्वाचन में सुचिता को तार-तार करके चुनाव जीता गया है और इंदिरा गांधी का वह चुनाव निरस्त कर दिया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी को अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए था किंतु उन्होंने ऐसा न करके 26 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी। देश में आजादी के बाद इमरजेंसी लगने की यह पहली घटना थी । जब प्रधानमंत्री के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने पद और शक्ति का जबरदस्त दुरुपयोग किया था।
इसका प्रभाव प्रेस पर भी पड़ा क्योंकि प्रेस पर सेंसरशिप लगाकर अभिव्यक्ति की आजादी बिल्कुल समाप्त कर दी गई थी। प्रेस परिषद को भंग कर दिया गया था। विदेशी मीडिया को कह दिया गया कि आप लोग बिल्कुल देश छोड़ दीजिए। बीबीसी संवाददाता मार्क टुली को तत्काल देश से छोड़ने के लिए आदेश दे दिया गया।
बड़े-बड़े पत्रकारों जैसे कुलदीप नैयर आदि 300 लोगों को जेल भेज दिया गया। इतनी कड़ी सेंसरशिप तो ब्रिटिश काल में भी प्रेस पर नहीं लगाई गई थी ऐसा तत्कालीन साम्यवादी नेता नंबुदरीपाद ने बताया।
फिल्म निर्माता अमृत नाहटा की फिल्म “किस्सा कुर्सी” का प्रदर्शन ही नहीं रोका गया बल्कि उनकी प्रिंट भी जलवा दी गई। 42वां संशोधन भी इन्हीं के कार्यकाल में किया गया। जो आज भी देश के लिए नासूर बना हुआ है।
इंदिरा गांधी की मृत्यु के पश्चात कांग्रेस के प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी भी मनमानी को जारी रखें। उनका सबसे बड़ा मनमानी का उदाहरण है शाहबानो का मुकदमा। एक महिला जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया था वह मुकदमा उच्चतम न्यायालय में चल रहा था जिसमें उच्चतम न्यायालय ने शाहबानो को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया और यह कहा कि समय के अनुसार इसे पूरा गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए लेकिन फैसले का विरोध करते हुए राजीव गांधी ने इसे नहीं माना और कानून बनवा करके तलाक की प्रथा को जारी रखा। इस पर कैबिनेट मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कैबिनेट से इस्तीफा दिया, मंत्री पद से इस्तीफा दिया और कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2003 से 2013 तक इस देश के प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह रहे लेकिन सुपर प्राइम मिनिस्टर के रूप में सोनिया गांधी काम करती रही उसे समय देश में ऐसे ऐसे कानून बनाए गए जिसने हिंदू समाज को काफी पीछे कर दिया यह वही वक्त था जब डॉ० मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश की परिसंपत्तियों पर पहला हक मुसलमान का है।
ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं लेकिन राहुल गांधी पीछे न देखकर वर्तमान प्रधानमंत्री को अधिनायक वादी और डिक्टेटर क्या-क्या बता रहे हैं जो अनुचित ही नहीं हास्यप्रद भी है।