
आगामी नवरात्र शक्ति पर्व का ही प्रतीक हैं। इसकी चर्चा श्रेष्ठ पौराणिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के सावर्णिक मन्वंतर के देवी महातम खंड में वर्णित है। यह नवरात्र यद्यपि वर्ष में चार बार लगता है लेकिन चैत्र औऱ अश्विन शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाला नवरात्र ही प्रचलन मे है और यही पूजन के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है । साधक लोग इस काल खंड को मंत्र, तंत्र और यंत्र की कठिन साधना के लिए उपयुक्त समय मानते हैं। इन दिवसों में देश की सभी शक्तिपीठों में लाखों की संख्या में साधक अहर्निश उपासना में लगें रहते हैं। इस महापुराण में सावर्णिक मन्वंतर के देवी महात्म खंड में भगवती द्वारा दुष्ट राक्षसों के वध और ऋषि मुनियों के कल्याण की कथा का वर्णन किया गया है। मार्कंडेय पुराण का यह अंश दुर्गा सप्तशती नाम से प्रसिद्ध है। इसमे पाठविधि: के साथ देवी कवच, अर्गलास्तोत्र, कीलक, वेदिक रात्रिसूक्त, तांत्रिक रात्रिसूक्त, देवीअथर्वशीर्ष, नवार्ण मंत्रजप, सप्तशतीन्यासः का विधिवत पाठ किया जाता हैं।
इसके बाद सप्तशती के 13 अध्याय में पृथक-पृथक राक्षसों के संहार और ऋषियों की रक्षा का वर्णन किया गया है।उदाहरण के लिए – मेधा ऋषि का राजा सुरथ और वैश्य को भगवती की महिमा बताते हुए मधु- कैटभ वध का प्रसंग सुनाया गया है। द्वितीय अध्याय में देवताओं के तेज से देवी का प्रादुभाव और महिषासुर नामक राक्षस की विशाल सेना के वध का वर्णन किया गया है। तृतीय अध्याय में सेनापतियों सहित महिषासुर का वध करने की कथा का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में इंद्र देवताओं द्वारा इन राक्षसों के मारे जाने पर सुंदर श्लोक में देवी की स्तुति की गई है। पंचम अध्याय में देवताओं द्वारा देवी की स्तुति चंड-मुंड के मुख से अंबिका के रूप की प्रशंसा सुनकर मुग्ध होने के साथ ही देवी के पास दूत भेज कर उन्हें समझौते का प्रस्ताव दिया जाने का वर्णन है पुनः दूत को देवी द्वारा लौटाने का वर्णन किया गया है। छठवें अध्याय में धूम्र लोचन नामक राक्षस के वध का वर्णन है। सातवें अध्याय में धूम्र लोचन के बाद चंड-मुंड का वध किये जाने का वर्णन है। आठवें अध्याय में रक्त बीज नामक राक्षस जिसका रक्त गिरने पर इससे बड़ी संख्या में पुनः रक्त बीजों का प्रकट होने का वर्णन है। अंत में वह देवी के हाथों मारा जाता है क्योंकि वह उसका रक्त ही पी जाती हैं। नवें में अध्याय में निशुम्भ का वध किए जाने का वर्णन है। दसवें अध्याय में शुम्भ के वध का वर्णन है। देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान दिए जाने की कथा का वर्णन ग्यारहवे अध्याय में है। देवी के तीनो चरित्रो के पाठ का विशेष महत्व बारहवे अध्याय में बताया गया है। सुरथ और वैश्य को देवी द्वारा वरदान दिए जाने का वर्णन सुंदर कथा के रूप में तेरहवे अध्याय में किया गया है। उपसंहार के साथ पुनः नवार्ण मंत्रजप, और ऋग्वेद का देवीसुक्तम, तांत्रिक देवी सुक्त, प्रधानिक रहस्यम, वैकृतिक रहस्यम, मूर्ति रहस्यम के साथ क्षमा- प्रार्थना और सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठ का वर्णन किया गया है। पुनः देवी की आरती के साथ यह सप्तशती का पाठ संपन्न होता है। यही मार्कंडेय पुराण में वर्णित शक्ति पूजन का संक्षिप्त रूप है जो वर्ष के दोनों नवरात्रों में साधकों द्वारा पाठ और जप के साथ देवी को सिद्ध किए जाने के विधान के रूप में प्रचलित है।
🌺🌺🌺