वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की दुर्दशा

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: श्याम नारायण पाण्डेय

जौनपुर – वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की स्थापना को लगभग तीन दशक से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन आज तक यह उच्च शिक्षा संस्थान का स्वरूप नहीं ले सका प्रारंभ में यह सम्बद्ध विश्व विद्यालय के रूप में था जिससे जौनपुर, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़ आदि जनपदों के महाविद्यालय इससे संबद्ध रहे समय से परीक्षा होती रही और परीक्षा फल भी उचित समय पर घोषित हो जाता रहा धीरे-धीरे यहां के महाविद्यालय अन्य विश्वविद्यालय से संबंध होने लगे ,जैसे वाराणसी भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र ,चंदौली आज काशी विद्यापीठ से संबंधित हो गए आजमगढ़ और बलिया में भी विश्वविद्यालय खुल गया इससे अन्य जनपदों के शेष महाविद्यालय इन से सम्बद्ध हो गए जिससे अब मात्र जौनपुर के ही महाविद्यालय इस विश्वविद्यालय से संबंधित रह गए हैं, अब विश्वविद्यालय मात्र जौनपुर के संबंध कॉलेज की ही परीक्षा ले रहा है फिर भी छात्रों का परीक्षा फल समय से नहीं घोषित हो पा रहा है उदाहरण के लिए पिछले वर्ष का परीक्षा फल अभी आया ही नहीं 15 अप्रैल से अगली परीक्षाओं का कार्यक्रम घोषित हो गया । यह दुर्व्यवस्था महामहिम के नवीन प्रयोग से देखी जा रही है जिसमें उन्होंने इस विश्वविद्यालय में महिला कुलपति की नियुक्ति प्रारंभ कर दिया है । पिछले सत्र में भी प्रोफेसर निर्मला एस. मौर्य की नियुक्ति की गई और इस समय प्रोफेसर वंदना सिंह की नियुक्ति इस पद पर कर दी गई है। इनकी नियुक्त को काफी समय हो गया किंतु प्रोफेसर सिंह अभी सभी विभागों से परिचित भी नहीं हो पाई किस विभाग में कितने लोग वेतन ले रहे हैं और वर्तमान में कितने उपस्थित रहते हैं यह देख ही नहीं पाई उदाहरण के लिए परीक्षा विभाग में एक ज्ञानेंद्र सिंह है, जो कभी आते ही नहीं ना उनके खिलाफ कोई कार्यवाही होती है। इनका घर तो आजमगढ़ है यह आजमगढ़ में ही ठेकेदारी करते हैं लेकिन नियमित रूप से वेतन विश्वविद्यालय से लेते हैं, संकाय भवन में धर्मेंद्र सिंह हैं यह कुद्दुपुर जौनपुर के रहने वाले हैं, यह विभाग भी 10 साल पहले ही बंद कर दिया गया किंतु इन्हें ना तो किसी विभाग से संबद्ध किया गया ना तो इनका वेतन रोका गया ना तो यह विश्वविद्यालय आते ही हैं वेतन मिल रहा है यह घर पर ही रहकर ठेकेदारी करते हैं इसी प्रकार राधेश्याम सिंह मुन्ना है जो रज्जू भैया संस्थान में तैनात हैं यह भी कभी नहीं आते इसी प्रकार एक दर्जन लोग हैं जो विश्वविद्यालय से वेतन तो लेते हैं किंतु आते कभी नहीं, कुलपति ने प्रारंभ एकाध बार प्रशासनिक भवन का निरीक्षण किया लेकिन ऊपरी तौर पर ही किया ।

। यदि प्रत्येक विभाग और अनुभाग में नियुक्त कर्मचारियों अधिकारियों की संख्या देखी जाए और वास्तविक स्थिति का अवलोकन किया जाए तो दर्जनों लोग गायब मिलेंगे तो सही स्थिति की जानकारी होगी ।

विश्वविद्यालय से गायब रहने वालों में केवल कर्मचारी ही नहीं , प्रोफेसर भी हैं। जैसे चीफ वार्डन मनीष कुमार और चीफ प्रॉक्टर राजकुमार सिंह। ये कभी आते ही नहीं। छात्रों ने इनकी शिकायत राजभवन तक किया। वहां से कई पत्र इनके बारे में कुलपति को प्राप्त हुए लेकिन इसके बावजूद इनके खिलाफ ना तो कोई कार्रवाई हुई और ना तो इनमें कोई सुधार हुआ। सबसे ज्यादा चिन्तनीय स्थिति यहां की पुस्तकालय की है जिसका बजट 20 करोड रुपए प्रति वर्ष है पैसे का उपयोग तो पूरा हो रहा है लेकिन छात्रों के उपयोग के लिए पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्तक नहीं आती। लाइब्रेरी का ईमानदारी से निरीक्षण परीक्षण किया जाए तो यहां चांदनी चौक दिल्ली की किलोग्राम के भाव से बिकने वाली पुस्तके ही अधिक संख्या में मिलेंगी ।

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