

दुर्गा सप्तशती के दूसरे और तीसरे अध्याय में असुरों के स्वामी महिषासुर और उसकी सेना के वध का वर्णन किया गया है। पूर्व काल में देवताओं और असुरों में भयंकर संग्राम हुआ जिसमें देवताओं के स्वामी इंद्र और असुरों का स्वामी महिषासुर था। इस युद्ध में असुर स्वामी महिषासुर की विजय हुई और इंद्र के नेतृत्व में संग्राम में रक्त देवता पराजित हो गए। इंद्रासन छीनकर महिषासुर राजा बन बैठा सारे देवता शोक व भयग्रस्त मानव की तरह पृथ्वी पर विचरने लगे जैसे वे अनाथ हो गए हो।
तब पराजित देवता प्रजापति ब्रह्मा के नेतृत्व में देवाधिदेव महादेव और भगवान विष्णु के पास जाकर अपनी दीनहीन दशा का वृतांत सुनाया। देवताओं ने कहा कि महिषासुर- सूर्य, इंद्र,अग्नि,वरुण,वायु, यम आदि देवताओं पर अपना आधिपत्य जमा कर सबका अधिष्ठाता बन बैठा है। हम आपकी शरण में हैं आप हमारी रक्षा करें। देवताओं की दिन-हीन दशा देखकर भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु बहुत ही कृद्ध हुए। उनके क्रुद्ध होते ही भगवान विष्णु एवं शंकर तथा इंद्र के मुख से महान तेज का प्राकट्य हुआ। इसी प्रकार समस्त देव शक्तियों के तेज से कल्याणमयी देवी का प्रादुर्भाव हुआ। इस दिव्य तेज पुंज युक्त भगवती को देखकर देवगढ़ अत्यंत प्रसन्न हुए।इस प्रकार शक्ति स्वरूपा देवी को दिव्य स्वरूप और अस्त्र-शस्त्र प्रदान कर देवी को देवताओं ने बहुत सम्मान दिया। समस्त देव शक्तियों के तेजपुंज, आभूषणों और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी ने बारंबार तेज अट्टाहाश किया भयंकर नाद और गर्जना से संपूर्ण दिगंत गूंज उठा जिससे संपूर्ण लोक में हलचल मच गई। सिंह वाहिनी देवी की शक्ति सामर्थ को देखकर देवगण देवी की स्तुति करने लगे।
इस भयंकर ध्वनि को सुनकर महिषासुर ने अपनी सेना से कहा कि यह क्या हो रहा है? फिर संपूर्ण असुर सेना से घिरकर देवी द्वारा किए गए सिंहनाद की ओर वह दौड़ पड़ा जो देवी अपनी दिव्य प्रभा से तीनों लोको को प्रकाशित कर रही थी। वह देवी हजारों भुजाओं से समस्त दिशाओं को आच्छादित करके खड़ी थी। इसी के बाद देवी का राक्षस सेना के साथ भयंकर युद्ध होने लगा। हजारों की संख्या में घोड़े, हाथी और रथ पर सवार राक्षस सेना देवी से युद्ध करने लगी। सिंहवाहिनी देवी खेल-खेल में उनके अस्त्र-शस्त्रों को काटकर उन्हें भगा रही थी। महिषासुर लाखों घोड़े, हाथी वह पैदल सैनिकों से सुरक्षित रथ पर सवार था। लाखों की संख्या में राक्षसों के मारे जाने के कारण वहां खून की नदियां बहने लगी। जगदंबा ने महिषासुर की सेना को कुछ ही क्षण में नष्ट कर दिया। देवी का सिंह भी खूब पराक्रम दिखलाते हुए शत्रु सेना का संघार कर रहा था। इस प्रकार महिषासुर की सेवा वैसे ही नष्ट हो गई जैसे – अग्नि, तृण और लकड़ी के ढेर को क्षण भर में नष्ट कर देती है। इस प्रकार महिषासुर की अपनी विशाल सेना को नष्ट होते हुए देखकर सेनापति चिक्षुर ने देवी पर वाणों की वर्षा करना शुरू कर दिया। देवी ने क्षण भर में ही उसके बाणों को काट डाला तथा सैकड़ो लोगों को मार डाला कुछ ही देर में सेनापति चिक्षुर भी देवी के हाथों मारा गया। इस प्रकार अपनी सेना का विनाश देखकर महिषासुर भैंसा का रूप धारण करके दहाड़ने लगा। देवगणों को सींग से मार कर गिराता हुआ महिषासुर देवी के सिंह की ओर तलवार लेकर दौड़ा। देवी ने अपने पाश से महिषासुर को बाध लिया तब महादैत्य सिंह का रूप धारण कर लिया वैसे ही देवी ने उसका सिर काटना चाहा वह फिर पुरुष के रूप में हो गया जैसे ही देवी ने उस पर वाण संधान किया वह हाथी के रूप में प्रकट हो गया और देवी के सिंह को सूढ़ से खींचने लगा तब देवी ने उसके सूढ़ को काट डाला फिर वह भैंसे के रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने उसे पटक कर अपने पैरों से उसे दबा दिया जैसे ही वह पुरुष दूसरा रूप धारण करना चाहा देवी ने अपनी विशाल तलवार से उसका गला काटकर शरीर से अलग कर दिया और उसकी लीला समाप्त हो गई और महिषासुर के मारे जाने पर देवगण प्रसन्न होकर देवी की स्तुति करने लगे। इस प्रकार सप्तशती का अध्याय दो और तीन समाप्त हुआ।
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