यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्री शैल पर्वत चोटी पर स्थित है। पुराणों के अनुसार इसकी कथा निम्नवत है। जब तारक असुर का वध करने वाले पार्वती नंदन कुमार कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके कैलाश पर लौटे तो इसी समय घूमते- घामते देवर्षि नारद भी कैलाश पहुंच गए। कुमार कार्तिकेय का विचार क्या है यह न समझ करके देवर्षि नारद उनको भ्रम में डालने के निमित्त श्री गणेश जी के विवाह का प्रसंग कह सुनाया। उसे अप्रिय प्रसंग को सुनकर के कुमार कार्तिकेय दुखी होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए। जब यह समाचार मां पार्वती को मिला तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने भगवान भोलेनाथ से आग्रह किया की कार्तिकेय को किसी भी तरह कैलाश पर्वत पर मेरे पास बुलाया जाए। भगवान शंकर ने देव, ऋषियों और अपने गढ़ों को बुलाकर यह निर्देश दिया कि वह कुमार को कैलाश पर ले आए। सभी लोग क्रोंच पर्वत पर जाकर के कुमार से भगवान शंकर के आदेश निर्देश को कह सुनाया और प्रार्थना भी किया की मां पार्वती बहुत दुखी हैं आप चलें भोलेनाथ के आदेश का भी प्रभाव कुमार कार्तिकेय पर नहीं पड़ा तो देवगढ़ ऋषिगण और शिवगढ़ सभी लोग दुखी होकर के भोलेनाथ के पास लौट आए।

तत्पश्चात् भगवान शंकर और पार्वती साथ ही कुमार के आवास क्रोंच पर्वत पर जाने के लिए तैयार हुए। तभी कार्तिक को पता चल गया की माता और पिता दोनों लोग मुझे कैलाश ले चलने के लिए यहां आ रहे हैं तो वह वहां से भी 30 किलोमीटर दूर चले गए दूर चले गए। पुत्र के क्रोंच पर्वत से दूर चले जाने पर भगवान शंकर और पार्वती दुखी हुए लेकिन कुछ मन में निश्चय करके भगवान शंकर ने अपना ज्योति शरीर धारण कर वहीं अधिष्ठित हो गए।
पुत्र के स्नेह में वशीभूत भोलेनाथ अब भी प्रत्येक अमावस्या के दिन इस पर्वत पर स्वयं आकर के निवास करते हैं और प्रत्येक पूर्णिमा के दिन भगवती पार्वती भी वहां आती हैं। उसी समय से श्री शैल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का मल्लिकार्जुन नाम जगत में विख्यात हो गया।
शिव पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण आदि में ऐसा उल्लेख है कि जो मनुष्य मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं भगवान शंकर पूर्ण कर देते हैं और वह समस्त पापों से भी मुक्त हो जाता है।
