जौनपुर। जनपद के स्टेशन रोड अहियापुर मोड़ स्थित आशादीप हॉस्पिटल एवं हार्ट चेस्ट रिसर्च सेन्टर के जाने-माने चिकित्सक डा0 वीएस उपाध्याय ने एक ऐसे मरीज को जीवनदान दिया है, जो जिले से रिफर हो चुका था। मरणासंन हालत में स्ट्रेचर पर आए पैरालाइसिस के जिस मरीज की सांसे अब-तब में रूकने वाली थी, वह आयुष्मान उपचार से सप्ताहभर में ही खुद पैरों से चलकर परिजन के चेहरे पर छायी मायूसी खुशी में बदल दिया। डा0 उपाध्याय के इस भारी-भरकम उपलब्धि से परिजन एक दूसरे से उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं।

डिस्चार्ज के समय धरती के इस भगवान के साथ सेल्फी तो लिया ही अंग वस्त्रम् एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित भी किया। बताया जाता है कि मछलीशहर के रामपुर ओलंदगंज मुजार निवासी राम सेवक पाल उम्र लगभग 62 वर्ष पुत्र स्व0 रामदेव हाई बीपी एवं सूगर के मरीज हैं। बीते 26 अगस्त को उनकी बीपी एकाएक हाई हो गयी। चक्कर आने लगा और वह बेहोश हो गए। स्थानीय चिकित्सक को दिखाया गया लेकिन आराम नहीं मिला। बाद में नईगंज स्थित एक न्यूरो सर्जन के पास ले जाया गया। वहां आवश्यक जांच के बाद पता चला कि बे्रन हेमरेज है। उपचार बश में नहीं था किन्तु भर्ती कर लिया गया। एक सप्ताह बाद शरीर के एक तरफ का हिस्सा भी काम करना बंद कर दिया। हालत अब-तब हो गयी। किसी तरह वहां से डिस्चार्ज कराया गया। तत्पश्चात और कई अस्पताल ले जाया गया परन्तु सभी ने उपचार को कौन कहे मरीज की बिगड़ी हालत देख हाथ खड़ा कर लिया। भागदौड़ के चक्कर में जिंदगी अब-तब हो गयी।
इसी बीच किसी के कहने पर एक सितम्बर को जनपद ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के प्रख्यात चिकित्सक डा0 वीएस उपाध्याय के पास ले जाया गया। उस समय वह उल्टी सांस ले रहा था। गला जाम हो गया था। ऑक्सीजन लेवल कम था। बे्रन में ब्लड जम गया था। कोलेस्ट्राल भी बढ़ा था। नाड़ी न के बराबर चल रही थी। ऐसे में चिकित्सक के मुताबिक कुल मिलाकर वह कुछ ही घंटे का मेहमान था। श्री उपाध्याय ने सारी रिपोर्ट और मरीज की स्थिति देखने के बाद चुनौती के रूप में लेकर अपने यहां भर्ती कर आयुष्मान से उपचार शुरू किया। उस दिन तो हालत जस की तस रही परन्तु दूसरे दिन होश आ गया। इसके बाद स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। जब दवा ने तेजी से अपना असर दिखाना शुरू किया तो सप्ताहभर बाद सून्न पड़ा शरीर का हिस्सा काम करने लगा। जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए स्टे्रचर से आया मरीज ज्यादा नहीं सिर्फ पांच दिन बाद खुद पैर से चलने लगा तो परिजन के चेहरे पर छायी मायूसी रौनक में बदल गयी और आँखों से खुशी के ऑशू टपक पड़े। पूरी तरह से स्वस्थ होने पर सात सितम्बर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज की दोबारा नई जिंदगी पाकर परिजन द्वारा डिस्चार्ज के दिन ही डा0 उपाध्याय को माल्यार्पण कर अंग वस्त्रम् एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। इस दौरान घर वालों की खुशी देखते ही बन रही थी।
15 सितम्बर को स्वास्थ्य परीक्षण के लिए अस्पताल बुलाया गया था। जांचोपरांत सब कुछ ठीक-ठाक मिलने पर दवा देकर छोड़ दिया गया। इस बावत पूछे जाने पर डा0 उपाध्याय ने बताया कि मरीज बीपी, सूगर और कोलेस्ट्राल हमेशा कन्ट्रोल रखें। इससे हार्ट अटैक नहीं होगा। गुर्दा एवं लीवर भी ठीक रहेगा। उन्होंने इस तरह के मरीजों को सलाह दिया कि वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली एवं मुम्बई जैसे बड़े महानगरों के अस्पतालों की सुविधाएं अपने जनपद के अस्पतालों में भी उपलब्ध है। बश मरीज अपने डाक्टर पर भरोसा रखें निश्चित लाभ होगा। उन्होंने बताया कि सही समय, सही अस्पताल और सही डाक्टर के पास गए मरीज की जिन्दगी हद तक बचायी जा सकती है। मरीज को पूरी तरह ठीक करने में डा0 वीएस उपाध्याय के साथ-साथ डा0 आबिद अली, डा0 पुष्पेन्द्र पाल, डा0 जितेन्द्र यादव एवं डा0 अनिल विश्वकर्मा का भी योगदान सराहनीय रहा।

